उल्लेखनीय है कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में तात्या टोपे की भूमिका महत्वपूर्ण, प्रेरणादायक और बेजोड़ थी। गुरिल्ला युद्ध के श्रेष्ठ संचालक, महान देश-भक्त, अमर बलिदानी तात्या टोपे की शहादत 18 अप्रैल 1859 को हुई।
तात्या टोपे भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी में से एक गिने जाते हैं। भारत को अंग्रेजों से आजाद कराने में उनकी अहम भूमिका रही है। 1857 की क्रांति में अहम भूमिका निभाने वाले तात्या टोपे के प्रयासों को आज भी याद किया जाता है।
उनकी युद्ध करने की नीति और चतुराई से वह अक्सर अंग्रेजों के चुंगल में आने से बच जाते थे। एक जगह से युद्ध में नाकामयाब होने पर वह दूसरे युद्ध की तैयारी में जुट जाते थे। इस रवैये से अंग्रेजों का नाक में दम निकल गया था।
तात्या टोपे ने अपने संपूर्ण जीवन में अंग्रेजों के खिलाफ करीब 150 युद्ध पूरी वीरता के साथ लड़े थे। इस दौरान युद्ध में उन्होंने करीब 10 हजार सैनिकों को मार गिराया था। 15 अप्रैल को तात्या टोपे का कोर्ट मार्शल किया गया था। जिसमें उन्हें मौत की सजा सुनाई गई। 18 अप्रैल को तात्या टोपे को सायं 5 बजे भारी भीड़ के बीच बाहर लाया गया। सैंकड़ों की तादाद में मौजूद लोगों के बीच उन्हें फांसी की सजा दी गई। हालांकि फांसी के दौरान तात्या के टोपे के चेहरे पर किसी तरह की शिकंज या निराशा के भाव नहीं थे। फांसी के दौरान उनका चेहरा दृढ़ता से भरा दिख रहा था।
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